काम के या बेकाम के: कांग्रेस में जा रहे अकाली और भाजपा के नेता

- पंजाब कांग्रेस शिरोमणि अकाली दल (सद) और आम आदमी पार्टी (आप) के बागी नेताओं को पार्टी में शामिल होने के लिए ललचा रही है.
- इसके अलावा कांग्रेस टिकटों की घोषणा करने में भी देरी कर रही है. लोगों का कहना है कि देरी के पीछे कांग्रेस की चतुराई है, ताकि बाहर से आए नेता को अगर टिकट नहीं मिले तो वह कहीं जाने की हालत में भी ना रहे.
पंजाब विधान सभा चुनावों में प्रतिपक्षी पार्टियों से आगे निकलने के लिए कांग्रेस ने आक्रामक रणनीति अपनाई है. वह शिरोमणि अकाली दल (सद) और आम आदमी पार्टी (आप) के बागी नेताओं को पार्टी में शामिल होने के लिए उकसा रही है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने खासतौर से अकाली-भाजपा की गठबंधन सरकार को निशाना बनाया है, जिसके कुछ वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता दलबदल करते नज़र आ रहे हैं.
पिछले कुछ दिनों में जो प्रमुख नेता कांग्रेस में शामिल हुए, उनमें सरवन सिंह फिल्लौर, इंदर सिंह बोलारिया, परगट सिंह, नवजोत कौर सिद्धू, रजिंदर कौर भागिके और महेश इंदर सिंह हैं. इन लोगों की या तो अपने निवार्चन क्षेत्रों में मजबूत स्थिति है, या फिर ये आगामी चुनाव अभियान में कांग्रेस के लिए काफी उपयोगी हो सकते हैं.
इन बागी नेताओं को बिलकुल सही समय पर कांग्रेस में लाया गया है ताकि उनका ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ उठाया जा सके. पर अमरिंदर के लिए आसान राह नहीं है. कांग्रेस में आने वाले ये नए खिलाड़ी अक्सर उन लोगों को तंग करते हैं, जो पार्टी में वर्षों से हैं.
बागियों की अहमियत
सूत्रों का कहना है कि फिल्लौर 6 बार विधायक और पूर्व मंत्री रह चुके हैं और राज्य में उन्हें दलितों का अच्छा-खासा समर्थन प्राप्त है. खासकर फिल्लौर और करतारपुर के अपने निर्वाचन क्षेत्रों में, जहां काफी संख्या में दलित हैं और उनमें से कई संपन्न हैं. संयोग से वे दोआब से हैं.
इसी तरह बोलारिया का अमृतसर के आसपास के इलाके में काफी प्रभाव है. ठीक इसी तरह पार्टी की मंशा परगट और नवजोत सिद्धू, दोनों का इस्तेमाल करने की है, जिनकी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में साफ और ताजा छवि है. सूत्रों का कहना है कि नवजोत अकालियों की मुखर आलोचक हैं, इसलिए चुनाव अभियान के दौरान सद और भाजपा दोनों पर हमला करने के लिए खासतौर से उपयोगी होंगी.
भागिके और महेश इंदर भी राजनीतिक रूप से वजनी नेता हैं, जिनके निकलने से अकालियों को जबरदस्त झटका लगा है. उम्मीद की जा रही है कि नवजोत के पति नवजोत सिंह सिद्धू के शामिल होने की घोषणा कांग्रेस नेता मौका देखकर करेंगे. नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेट से राजनीति में आए और कुछ महीनों पहले राज्यसभा की सीट छोड़ दी थी.
उम्मीदवारों की सूची में देरी
कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने कैच को बताया, ‘इस मौके पर बागियों के शामिल होने से यह मैसेज जाता है कि सद-भाजपा राज का विकल्प कांग्रेस ही है. गौरतलब है कि सद-भाजपा को अभी काफी विरोध झेलना पड़ रहा है. आप में आए दिन की टूटन से पार्टी का काम आसान हो गया है. लोग कांग्रेस के लिए अपनी पार्टियां छोड़ रहे हैं, जिससे यह मैसेज जाता है कि विधानसभा चुनाव की दौड़ में कांग्रेस सबसे आगे है.’
पर ऐसे बागियों को शामिल करने को कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची निकालने से जोड़ा जा रहा है. इस समय पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवारों की सूची निकालना है, जो हर हाल में जीतें, बजाय उनके जिन्हें पार्टी हाई कमांड या अन्य फैक्टर्स के कारण खड़ा किया गया है. पंजाब के कार्यकर्ता भगवान को मना रहे हैं कि यहां हाई कमान का कम से कम हस्तक्षेप हो.
बागियों और उम्मीदवारों की सूची को लेकर कई सवाल हैं. मुख्य सवाल यह है कि जो हाई-प्रोफाइल वाले नेता अभी पार्टी में शामिल हुए हैं, पार्टी उन्हें क्या स्थान देगी? क्या वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडेंग़े? यदि हां, तो पार्टी अपनी जोखिम पर उन्हें कैसे हैंडल करेगी, जिनकी महत्वाकांक्षा इन्हीं सीट्स पर चुनाव लडऩे की रही है?
लोगों का कहना है कि कांग्रेस बड़ी चतुराई से टिकट की घोषणा करने में देरी कर रही है, ताकि वह इस मामले में सबसे आखिरी रहे. जबकि आप 117 विधानसभा सीटों के लिए 92 और अकाली 82 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है. अकालियों को अब केवल एक दर्जन उम्मीदवारों की घोषणा करनी है, क्योंकि शायद वह अपनी सहयोगी भाजपा को 23 सीट दे.
जाहिर है ये 12 टिकट पार्टी के वरिष्ठ लोगों को मिलेंगे, जिनमें मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे और उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल, सुखबीर के साले बिक्रमजीत सिंह मजीठिया जैसे लोग हैं.
इन पार्टियों ने अपने ज्यादातर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है इसलिए कंग्रेस में जो तटस्थ हैं, उन्हें टिकट नहीं मिले, तो वे उनसे आगे बढऩे की स्थिति में नहीं होंगे. अपने उम्मीदवारों के नाम बताने में देरी के बावजूद कहना होगा कि कांग्रेस की अब भी पिछले सालों से जल्दी तुलना की जा रही है.
समझाया या बाध्य किया?
एक बागी को कांग्रेस अपने में शामिल करने में विफल रही. वे हैं देविंदर सिंह गुबाया. देविंदर फिरोजपुर से मौजूदा सद विधायक शेर सिंह गुबाया के बेटे हैं. देविंदर की मां कृष्णा रानी का भी कांग्रेस में शामिल होने का था, पर रिपोर्ट है कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल इस परिवार को अकालियों के साथ जोड़े रखने में सफल हो गए.
हालांकि कुछ खबरों का कहना है कि गुबाया परिवार को अकालियों ने अपने साथ रहने के लिए पता नहीं ‘समझाया’ या ‘बाध्य’ किया क्योंकि जिस दिन देविंदर और उनकी मां को कांग्रेस में शामिल होना था, उनके कॉलेज में सतर्कता छापे पड़े.
गुबाया परिवार राय सिख संप्रदाय से है, जिनको फिरोजपुर और आसपास के इलाकों में बहुत माना जाता है. अगर शेर सिंह की पत्नी और उनके बेटे कांग्रेस में आते हैं, तो अकाली उन्हें पार्टी से बाहर निकाल फेंकते, पर वे लोकसभा सीट को बनाए नहीं रख सकते थे.
अकालियों का पलटवार
कांग्रेस की बागियों को उकसाने की हरकत देखकर अकाली दल चुप रहने वाला नहीं था. सद ने आरोप लगाया कि अमरिंदर ने सद और अन्य पार्टी के बागियों को आश्वासन देकर उनकी पार्टी की केंद्रीय संसद समिति को कम आंका है. सुखबीर बादल ने इसे त्रासदीपूर्ण बताया कि जो राष्ट्रीय पार्टी दो तिहाई बहुमत पाने और अगली सरकार बनाने का दावा कर रही है, वह अन्य पार्टियों के ‘बचे-खुचे’, ‘खारिज’ लोगों पर आश्रित है.
उन्होंने कहा,‘सद और भाजपा के इन खारिज लोगों पर निर्भरता से कांग्रेस की स्थिति साफ झलकती है कि इन ‘बचे-खुचे’, ‘खारिज’ लोगों की काग्रेस के अपने निष्ठावान लोगों से बेहतर स्थिति है. कांग्रेस को उम्मीद है कि ये लोग उनके हित में रहेंगे.’ सुखबीर ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए सुझाव दिया कि वह कुछ दिन और अपने उम्मीदवारों की घोषणा टाले, जब तक कि सद और भाजपा अपने उम्मीदवार नहीं चुन लें, ताकि वह इन पार्टियों के ‘डस्टबिन’ से कुछ और नेता बीन सके.
First published: 11 December 2016, 8:31 IST