मोदीजी ‘आलाप’ ही लेते रहेंगे या गाना भी शुरू करेंगे?: संकट मोचन महंत

पिछले ढाई-तीन साल से विकास के वादे कर रही मोदी सरकार से वाराणसी के संकट मोचन मंदिर के महंत विश्वंभर नाथ मिश्र खुश नहीं हैं. वे कहते हैं, विकास नहीं होने से लोग अपना धीरज खो रहे हैं. वे महज वादों पर जी नहीं सकते. पिछले ढाई साल से केंद्र की मोदी सरकार यही कर रही है.
सरकार का आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है और वह अब तक ‘अलाप मोड’ में है. गायन के दूसरे स्तर ‘गतकारी’ तक नहीं पहुंची है. पहला स्तर इंप्रोवाइजेशन का है, जहां से ‘राग’ के आगे बढ़ने की शुरुआत होती है और ‘गत’ लय की गति है. तब रचना पूरे निखार पर होती है.
मिश्रा संकट मोचन मंदिर के महंत ही नहीं हैं. वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की आईआईटी में माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स के प्रोफेसर भी हैं. संकट मोचन फाउंडेशन की ओर से गंगा को साफ करने की मुहिम भी चला रहे हैं.
काबिलियत की कमी
नरेंद्र मोदी सरकार का नाम नहीं लेते हुए मिश्रा कहते हैं, ‘अलाप’ से आप खुद को और ऑडियंस को तैयार करते हैं. तब ऑडियंस आपके गायन की तारीफ करती है. पर अब यह हो रहा है कि हम पिछले ढाई सालों से केवल ‘अलाप’ ही सुन रहे हैं. आपने संगीत नहीं सीखा है, तो आप क्या गाएंगे?
महंत कहते हैं, ‘सब उम्मीद कर रहे हैं कि अब उनका गायन...‘गतकारी’ शुरू होगी. पर बहुत संभव है कि पांच साल का कार्यकाल महज ‘अलाप’ में खराब हो जाए क्योंकि ‘गतकारी’ नहीं सीखी है.’ वे कहते हैं, हो सकता है सरकार के पास कई अच्छे विचार हों, पर उसे क्रियान्वित करने की काबिलियत नहीं है.
मिश्रा कहते हैं कि लोग अब धीरज खो रहे हैं. वे किसी को भी काम सीखने के लिए 5 साल नहीं दे सकते. महतं पूछते हैं, ‘आपके पास 5 साल हैं, और इस पूरे कार्यकाल में अब तक काम सीख ही रहे हैं, तो करना कब शुरू करेंगे? आखिर लोगों के भी अपने सपने हैं, महत्वाकांक्षाएं हैं. उनके सपने कब साकार होंगे? क्या ये महत्वाकांक्षाएं हमेशा अधूरी रहेंगी?’ मिश्रा ने कहा कि लोगों की नाराजगी हाल के चुनावों के नतीजों में नजर आएगी.
नोटबंदी ने दरिद्र बनाया
नोटबंदी के सख्त आालोचक मिश्रा दावा करते हैं कि इसने लोगों को दरिद्र बनाया है. साड़ी बुनकरों से लेकर दिहाड़ी मजदूर और गृहणियों तक सब परेशान हुए हैं. मिश्रा ने कटाक्ष किया, ‘और फिर आप दावा करते हैं कि यह नया कदम है और प्रमुख अर्थशास्त्री तक उसे समझ नहीं सकते. बहुत खूब! तो (स्थिति यह है कि) अमर्त्य सिंह और मनमोहन सिंह नोटबंदी के औचित्य को नहीं समझ सकते, पर रामदेव उनसे बेहतर समझ सकते हैं. और अमिताभ बच्चन जैसी महान शख्सियत भी नोटबंदी से खुश है.'
महंत कहते हैं कि सरकार ने यह सच जान लिया है कि नोटबंदी से लोग खुश नहीं हैं, पर इस बात से जरूर संतुष्ट हैं कि उनसे बेहतर स्थिति वाले उनसे ज्यादा परेशान हुए हैं. और उसी को सरकार ने भुनाया है. ‘जो भी नोटबंदी के खिलाफ बोलता है, उस पर तुरंत शक किया जाता है कि वह काला धन जमा करने वाला है. इसलिए इस डर से कि कोर्ई उसे ऐसा नहीं समझ ले, कोई भी जुबान नहीं खोलना चाहता.’
मिश्रा कहते हैं कि गृहणियों की बचत, घर का आधार थी, सबको पता चल गया और नष्ट हो गई. ‘हमने कभी नहीं जानना चाहा कि हमारी माएं और पत्नियां क्या बचा रही हैं. हम जानते थे कि संकट के समय उनकी यह बचत काम आती है. अब वह बचत भी सबके सामने आ गई.’
फिर तो नेट से रोटी खाई जाए
वे कहते हैं, ‘आप सख्त फैसला नहीं ले सकते कि आपकी जेब में जो कुछ है, वह काला धन है और जो बैंक में है, सफेद है. वे आगे तर्क देते हुए कहते हैं कि यदि टैक्स चुका दिया है, तो लोगों को अपना पैसा अपनी मर्जी से रखने की आजादी होनी चाहिए.
कैशलेस अर्थव्यवस्था और लोगों को वेब ट्रांजैक्शन से आत्मनिर्भर बनने पर जोर देने के संदर्भ में वे कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ‘यदि आप सोचते हैं कि कैशलेस अर्थव्यवस्था संभव है, तो भारत में रिजर्व बैंक क्यों है और करेंसी नोट छापने में पैसा क्यों बर्बाद करते हैं? फिर अप लोगों को नेट से रोटी खाने के लिए भी कह सकते हैं. उस स्थिति में आपको रोटी भी वर्चुअल खानी चाहिए.’
First published: 2 March 2017, 8:14 IST